यदि हम जीवनरूपी इस खूबसूरत कृति को केवल पैसे रूपी रंग से बिना सोचे-समझे पोत दें तो अंत में कैसा भद्दा चित्र बनेगा, इसकी कल्पना मात्र से ही मन सिहिर उठता है ।
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इस अवधि के कुछ संघर्षों पर ही विचार करना, उनमें से सबसे बड़े संघर्ष को छांटकर अलग करना और कुछ खास चुनाव-परिणामों के साथ उनका तूमार खड़ा करना तथा उन्हें संपूर्ण साधारणीकरण का आधार बनाना-इस पद्धति से संपूर्ण परिस्थ्ािित का बहुत ही भद्दा चित्र उपस्थित होगा।